यूँ तो तुम,
हर पल
साथ साथ हो -
लेकिन-
मेरे संवेदनों ,
मेरी भावनाओं से दूर !
मैंने बचपन में -
तुम्हें हर पल का साथी समझा था ,
लेकिन-नहीं.....!
तुम कभी दूर-कभी पास
व्यर्थ ही गतिशील !
तुम मुझे शायद समझ नहीं सकती -
क्यूँ कि-
तुम-
बारिश कि फुहारों में धुन्धलाती-
मेरी 'परछाईं ' मात्र हो !
- गंगेश राव
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
this too nice poem and so imotional.
ReplyDeletebhai sahab rachna ka rup nahi samjh saka
ReplyDeleteagar ise geet kahe
or dil ko bhaut achi lagi aapki rachna sach me par dimag ise geet kahne me sankoch kar raha hain
ya ho sakta hain aap ki ichha kuchh or rahi ho
shesh kushal
यह काव्य रचना अलसाई क्यों है ?
ReplyDelete