Thursday, November 13, 2014

बस यूँ ही .................


बस यूँ ही ..........

वो चंद हसरतें
जो दफ़न हो के रह गयीं
आज भी
रह रह के सिसक उठती हैं
और चाँद
जो तुम संग मुस्कुराया करता था
आज वो भी ग़मगीन है...........
'कभी तुम लौट आओ'
ये उम्मीद, अब ज़िंदा नहीं रही...
सर्दियाँ अब गुलाबी फितरत लेकर नहीं आतीं
ना ही बारिश मल्हार राग गाती है.......
तुम संग मौसम भी बदल गए.......
काश तुम ये देख पाती..........
आज ये नाउम्मीदियों का बुलबुला फूट पड़ा
और ये चँद अल्फाज कह दिए.....
बस यूँ ही.......................................
       
                                         _____गंगेश राव 

3 comments:

  1. आप सब की टिप्पणियाँ आमंत्रित हैं

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    1. Hi...you have written vry beautifully. .. keep writing... :-)

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