Thursday, November 13, 2014

बस यूँ ही .................


बस यूँ ही ..........

वो चंद हसरतें
जो दफ़न हो के रह गयीं
आज भी
रह रह के सिसक उठती हैं
और चाँद
जो तुम संग मुस्कुराया करता था
आज वो भी ग़मगीन है...........
'कभी तुम लौट आओ'
ये उम्मीद, अब ज़िंदा नहीं रही...
सर्दियाँ अब गुलाबी फितरत लेकर नहीं आतीं
ना ही बारिश मल्हार राग गाती है.......
तुम संग मौसम भी बदल गए.......
काश तुम ये देख पाती..........
आज ये नाउम्मीदियों का बुलबुला फूट पड़ा
और ये चँद अल्फाज कह दिए.....
बस यूँ ही.......................................
       
                                         _____गंगेश राव 

Wednesday, January 29, 2014

रिक्तता व्याप्त है ...... 



सन्नाटे -
दूर पहाड़ों के पीछे-
अंधेरी रात में -
गर्मी-उमस 
और बेचैनी सहेजते हैं........

मन में अकुलाता हुआ घाव, 
रह रह कर पीर देता है -
उभरता है शांत होता है , 

न जाने कितने टुकड़े ज़िंदगी के -
यूँ ही बिखरते गए 
दरकते गए............

मन छलनी हो चुका है,
आँखों में छाया अन्धेरा भी-
धुंधला चुका है .....

और-

चीखते सन्नाटों को-
ये सब सहेजने के बाद भी- 
हाथ कुछ भी नहीं लगा है .........


मन तिक्त है ,
हर एक कोना रिक्त है,
मन का हर एक कोना रिक्त है ........!
                                                                   


                                                            _____________गंगेश राव

Tuesday, August 20, 2013

एक कविता तुम्हारे लिए!

ऐ जानशीं!
वो तुम ही थी?

न जाने कितने वादे किये थे......!

आज उन तमाम वादों ....
की दीवार पर -
फफूंद जवां होती है.........

ये सर्द हरी  काई......
न जाने क्यूँ मनहूस सी मालूम होती है....!

शायद तुम्हे इल्म न हो............

अक्सर इस हरी दीवार से चिपका-
ये सिसकता धुआं.....

तुम्हारी यादों के अक्स उकेरता है....!
शायद ये पागलपन सा लगे......


लेकिन तुम इसे समझ नहीं सकती.....!
कभी भी नहीं.........!
:'(

Wednesday, June 8, 2011

कैक्टस बढते रहते हैं!


कैक्टस बढते रहते हैं!

कैक्टस घर की छतों पर भी उगते हैं,
ज़िंदगी के ठहरी ठहरी सी आबो- हवा में भी -
कैक्टस दिन रात बढते रहते हैं !

दुश्वारियों-परेशानियों के मंडराते
बादलों की छांव तले-
छतों पर उगे
कैक्टस बढ़ते ही रहते हैं .....

उन्हें इन बादलों में पानी की तलाश नहीं!
हाँ -
तपते-रिसते आंसुओं की नमी के सहारे -
छतों पर उगे कैक्टस
दिन रात बढ़ते ही रहते हैं .....

Monday, November 29, 2010

'तुम पास हो.........!'

तुम पास न होकर भी
मेरे पास हो,
इठलाती कलियों की सुगंध में ,
गुलाबी सर्दियों में,
इन सुनहरी हसीन वादियों में-
-
-
-
मैंने हर लम्हा तुम्हारे साथ जिया है........।
तुम पास न होकर भी-
मेरे पास हो!

आज इस सिसकती शाम में-
तुम्हारा महकता एहसास बहुत याद आया है.........
सच है-

तुम पास न होकर भी-
मेरे पास हो!


Monday, April 13, 2009

neend ki baho mein

ऐ सितारों प्यार से उनके सर पे हाथ फेर देना ,
मेरी नींद ने थकान की चांदनी ओढ़ ली है!
-गंगेश राव

Sunday, April 5, 2009

परछाईं

यूँ तो तुम,
हर पल
साथ साथ हो -
लेकिन-
मेरे संवेदनों ,
मेरी भावनाओं से दूर !

मैंने बचपन में -
तुम्हें हर पल का साथी समझा था ,
लेकिन-नहीं.....!
तुम कभी दूर-कभी पास
व्यर्थ ही गतिशील !
तुम मुझे शायद समझ नहीं सकती -
क्यूँ कि-
तुम-
बारिश कि फुहारों में धुन्धलाती-
मेरी 'परछाईं ' मात्र हो !
- गंगेश राव