Wednesday, June 8, 2011

कैक्टस बढते रहते हैं!


कैक्टस बढते रहते हैं!

कैक्टस घर की छतों पर भी उगते हैं,
ज़िंदगी के ठहरी ठहरी सी आबो- हवा में भी -
कैक्टस दिन रात बढते रहते हैं !

दुश्वारियों-परेशानियों के मंडराते
बादलों की छांव तले-
छतों पर उगे
कैक्टस बढ़ते ही रहते हैं .....

उन्हें इन बादलों में पानी की तलाश नहीं!
हाँ -
तपते-रिसते आंसुओं की नमी के सहारे -
छतों पर उगे कैक्टस
दिन रात बढ़ते ही रहते हैं .....

6 comments:

  1. टिप्पणियां सादर आमंत्रित हैं.........

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  2. aap bahut achchha likhte hai ....i like it....

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  3. aadat hoti hai ye cactus ki,nahi jaane deta hai jal ki boondo ko bahar,badal jati hai pattiyan kanto me.aur kaante to doston ko bhi dard de dete hain.

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  4. कैक्टस को छ गए हैं भाई !

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  5. न मौसम बदला , न किसी ने पानी दिया
    कैक्टस हो जाना उचित लगा - हरा तो हूँ !

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